CAG रिपोर्ट में खुलासा : CAG ने उत्तराखंड के स्वास्थ्य सिस्टम पर उठाए सवाल, कहीं ये बातें

स्वास्थ्य सेवाओं का हाल बीते शनिवार को विधानसभा सदन में रखी गई कैग (CAG) की जिला और संयुक्त चिकित्सालयों की लेखा परीक्षा से भी सामने आया। 


उत्तराखंड : बीते शनिवार को प्रदेश के स्वास्थ्य सिस्टम पर कैग (CAG) की रिपोर्ट में गंभीर सवाल उठाए गए हैं। बता दें, स्वास्थ्य सेवाओं का हाल बीते शनिवार को विधानसभा सदन में रखी गई कैग (CAG) की जिला और संयुक्त चिकित्सालयों की लेखा परीक्षा से भी सामने आया। यह सामने आया कि जिला अस्पताल रेफरल सेंटर बन कर ही रह गए हैं। 

राज्य के सार्वजनिक अस्प्तालों में वर्तमान मरीज भार के आधार पर एवं राज्य सरकार द्वारा मार्च 2011 में जारी आदेशानुसार इसके अंतर्गत विभाग को आईपीएचएस के अनुसार सेवाएं और मानव शक्ति उपलब्ध कराना जरूरी था। 

इसके बाद भी स्वीकृत पदों की संख्या के सम्बन्ध में पुन: आंकलन को कोई कार्यवाही नहीं की गई थी। यहां उपकरणों से लेकर डाक्टरों, नर्सों, दवा, पैथोलॉजी जांच आदि की भारी कमी है। इस तरह के संसाधनों का उपयोग सही तरीके से भी नहीं किया जा रहा है।

कैग (CAG) ने लेखा परीक्षा के जरिए वर्ष 2014 से लेकर 2019 के बीच जिला, संयुक्त चिकित्सालयों और महिला अस्पतालों का हाल जाना। रिपोर्ट बता रही है कि प्रदेश में लोगों के स्वास्थ्य क्षेत्र में जबरदस्त सुधार की जरूरत है। हाल यह है कि स्वास्थ्य मामले में उत्तराखंड 21 राज्यों में 17 वें नंबर पर है। पहला खोट कैग को नीति के स्तर पर ही नजर आया।

जरूरत पहाड़ों में, चिकित्सकों की भीड़ मैदानों में

कैग (CAG) ने पहाड़ों में डॉक्टरों की कम संख्या और मैदानों में जरूरत से अधिक भीड़ पर भी सवाल उठाए हैं। बताया है कि पहाड़ों में स्वीकृत पदों पर भी पूरे डॉक्टर मौजूद नहीं हैं। वहीं दूसरी ओर मैदानी अस्पतालों में स्वीकृत पदों से भी अधिक संख्या में डॉक्टर तैनात किए गए हैं।

रिपोर्ट में बताया गया है कि पहाड़ी क्षेत्रों के अस्पतालों और मैदानी क्षेत्र के अस्प्तालों में डॉक्टरों की संख्या में भारी अंतर है। कान, नाक, गला(ईएनटी) डॉक्टरों के स्वीकृत पदों के बावजूद पहाड़ों में उन्हें तैनात नहीं किया गया है। जबकि मैदानी क्षेत्रों में पूरी क्षमता के साथ डॉक्टरों की तैनाती की गई। पहाड़ों में हड्डी रोग विशेषज्ञों की तैनाती सिर्फ 50 प्रतिशत रही।

जबकि मैदानी क्षेत्रों में पूरे डॉक्टर रहे। मैदानी क्षेत्रों में अस्पतालों में सामान्य सर्जन भी स्वीकृत पदों से अधिक तैनात किए गए। कई अस्प्तालों में स्त्री रोग और औषधि विभाग में प्रति डॉक्टर वाह्य रोगी विभाग के रोगियों की संख्या प्रति चिकित्सक कुल औसत रोगियों की संख्या की तुलना में बहुत अधिक थी। 

सैंपल जांच किए गए अस्पतालों में स्त्री रोग विभाग में 47 प्रतिशत रोगियों एवं औषधि विभाग में 75 प्रतिशत मरीजों को 2014-19 के दौरान सैंपल जांच चयनित महीनों में औसतन पांच मिनट से भी कम परामर्श का समय मिल सका।

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